सेक्स विद वाइफ नहीं कर पाया दुल्हा पहली रात को तो उसकी नवविवाहिता दुल्हन पर क्या बीती? उसने अपने पति से सेक्स करने के लिए क्या क्या कोशिश की.
दोस्तो, आप लोग मेरी कहानी के हर बार बदलते नए विषय को पसंद करते हैं, यह बात आपके मेल मुझे बताते हैं।
मेरी पिछली कहानी थी: ढलती उम्र में अदल बदल
असल में अब मेरी कहानियाँ आप जैसे पाठकों से मिली जानकारी पर ही आधारित हैं तो कहीं न कहीं जीवन की सच्चाइयों के आस-पास ही घूमती हैं।
आज समाज में हर रिश्ते के मायने बदल गए हैं, सोच बदल गयी है।
लोक-लाज, सही गलत के पैमाने बादल गए हैं।
अर्थ और काम दोनों हर व्यक्ति की सोच पर हावी है।
यह कहानी मालविका ठाकुर की जिंदगी से जुड़ी है।
मालविका बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाली एक सेक्सी सोच की महिला है। मालविका एक मध्यवर्गीय पारिवारिक परिवेश से आई है।
उसने बीसीए की पढ़ाई की थी। आगे पढ़ाने की उसके पिता की आर्थिक स्थिति नहीं थी पर पढ़ाई के दौरान उसके इश्क के चर्चे इस उसके नाम के साथ जुड़ते रहे।
चुदाई तो उसने किसी से नहीं कराई पर बाकी अपने शौक पूरा करने के लिए चूमाचाटी तक उसे परहेज नहीं था।
खूबसूरती के कारण उसका विवाह मात्र 25 वर्ष की उम्र में राजस्थान के एक कस्बे के धनी जमींदार परिवार में ठाकुर धर्मपाल के लड़के विजय हो गया।
विजय बहुत सीधा सादा लड़का था।
मालविका के माता-पिता को शादी में कुछ नहीं लगाना पड़ा।
इतने बड़े घर में मालविका ब्याही जा रही है, बस यही बात उनको ठाकुर धर्मपाल के परिवार के बारे में कुछ भी मालूम करने से रोके रही।
तय होने के एक महीने के अंदर ही ब्याह हो गया।
मालविका के कपड़े गहने के सारे अरमान ठाकुर साहब ने पूरे कर दिये।
ठाकुर धर्मपाल की पत्नी का देहांत दो वर्ष पूर्व ही हो गया था तो घर की ज़िम्मेदारी और विवाह की ज़िम्मेदारी विजय की नानी ने यहाँ रह कर पूरी की और शादी के बाद नवब्याहता को घर की पूरी ज़िम्मेदारी देकर वो वापिस चली गईं।
शादी से एक दिन पहले विजय को बुखार हो गया था इसलिए वो शादी में स्टेज या अन्य रस्मों में शांत सा ही रहा।
मालविका सोचती रही कि वो बहुत सीधा है।
ससुराल की बड़ी हवेली और पैसे की चकचौंध ने उसे भी अंधा कर दिया।
हर काम के लिए हवेली में नौकर चाकर थे, तो मालविका पहले दिन से ही रानी बन गयी।
हवेली में ठाकुर साहब का दबदबा था, हर चीज़ उनसे पूछ कर होती थी, सारे नौकर चाकर गुलाम से लगते।
फिर नई बहू तो वैसे भी कम मुंह लगती है किसी के!
शादी के शुरुआती दो तीन दिन तो इसी में निकल गए कि विजय बीमार है।
वो रात को दवाई खाकर जल्दी ही सो जाता।
मालविका को बस यहीं थोड़ी मायूसी रही क्योंकि उसने सुहागरात पर जोरदार मिलन के खूब किस्से सुन रखे थे और पॉर्न फिल्मों में देख देख कर अपनी भी पूरी तैयारी कर रखी थी।
पर यहाँ तो विजय ने किस भी नहीं किया था तो चूत लंड का सवाल ही नहीं था।
मालविका सोते हुए विजय को कई बार किस करके या लंड के ऊपर हाथ फिराकर उठाने की कोशिश भी करती पर विजय सोता रहता।
उसने एक बार बेशर्म बनकर सोते हुए विजय का लंड पाजामे से बाहर निकालकर चूमा भी … पर विजय बेसुध सोता रहा।
मालविका भी सोच लेती कि इनकी तबीयत ठीक हो जाएगी तब ऐश करेंगे।
उसकी चूत को तो उंगली, मोमबत्ती की आदत थी; तो फिलहाल वही सही।
अपनी सहेलियों को सुनाने के लिए उसके पास हवेली की शानो शौकत के किस्से बहुत थे।
तीसरे दिन ठाकुर साहब की गाड़ी से वो मायके आई, साथ में ठाकुर साहब और विजय दोनों आए।
वहाँ दो-तीन घंटे रुक कर सभी वापिस आ गए।
अब मालविका को भी हवेली के ऐशोआराम के सामने अपने मायके की मजबूरियाँ हल्की लग रही थीं।
वो तो साथ लाये तोहफों, और अपने पहने महंगे कपड़ों और ज़ेवरों से अपनी सहेलियों-पड़ोसियों में भरपूर जलन पैदा कर आयी।
अब मालविका की शादी को एक सप्ताह हो गया था।
विजय की बीमारी का ड्रामा भी अब और नहीं खींच सकता था।
रात को हवेली का नियम था कि कोई नौकर हवेली में न सोकर पास बने मकान में रहते थे.
तो हवेली में रात को 10 बजे बाद केवल ठाकुर साहब, विजय और नई बहू रहते।
रात के खाने के बाद ठाकुर साहब अपने कमरे में चले जाते और विजय और मालविका अपने कमरे में।
आज दिन में ही मालविका ने सोच लिया था कि आज वो सुहागरात मनाकर ही रहेगी.
तो उसने दिन में ही अपना कमरा गुलाब के फूलों से सजवा लिया था।
विजय ने कमरे की सजावट देखी तो वो हल्के से मुस्कुराया।
कपड़े बदलकर विजय बेड पर बैठ गया।
मालविका बाथरूम से सुहागरात की पूरी तैयारियों से सज कर आई।
वो अप्सरा जैसी सुंदर लग रही थी।
झीनी नाइटी में उसके मांसल मम्मे, तराशा हुआ जिस्म और गोरा महकता बदन निकला ही पड़ रहा था।
ऐसा लग रहा था मानों साक्षात उर्वशी आ गयी हो।
बड़ी अदा से मालविका ने लाइट धीमी करके बेड पर आई और विजय के गले लग गयी।
विजय ने मुस्कुराकर उसको आलिंगन में ले लिया।
मालविका चाह रही थी अब विजय उसे भरपूर वो सुख दे जिसकी कामना हर लड़की करती है।
पर विजय शांत था।
मालविका ने सोचा कि ये तो बहुत सीधा है, चलो मैं ही सिखाती हूँ।
उसने विजय के होंठों से अपने होंठ भिड़ा दिये और उसे लेकर बेड पर लेट गयी।
विजय चिपट तो रहा था पर उसमें वो गर्मजोशी नहीं थी।
मालविका ने विजय से कहा कि वो शरमाये नहीं।
विजय की आग धधकाने के लिए मालविका ने अपने जेवर उतारने शुरू किए और धीरे धीरे केवल एक छोटी सी ड्रेस में आ गयी।
विजय निर्विकार भाव से बस उसके कहने से उसके गहने संभाल कर साइड टेबल पर रखता रहा और आखिर में मालविका के कहने पर उसने साइड लैम्प को बंद कर दिया।
कमरे में पूर्ण अंधेरा छा गया।
अब मालविका ने अपने और विजय के सारे कपड़े उतार फेंके और बेतहाशा विजय को चूमने चाटने लगी।
तो विजय भी अब उसका साथ देने का प्रयास कर रहा था।
विजय का लंड सामान्य आकार का पर मोटा था और बहुत ज्यादा नहीं पर तना हुआ था।
मालविका ने अपने मम्मे विजय के मुंह में घुसेड़े कि वो इन्हें चूस-चूस कर लाल कर दे, जैसा पॉर्न मूवीज़ में होता है.
पर विजय कुछ खास नहीं कर पा रहा था।
मालविका को अपने कॉलेज लाइफ के वो जवान रईसजादे याद आ रहे थे जो उसके गुलाब जैसे होंठ चूस चूस कर और उसके मम्मे दबा दबा कर उसे उत्तेजित कर देते थे।
पर आत्मसमर्पण करने का पल मालविका के जीवन में पहली बार था.
विजय पहला मर्द था, पहला लंड था; जिसे वो सब कुछ देना चाहती थी।
वो बहुत उत्तेजित थी।
उसने सारी शर्म ताक पर रख कर 69 की पोजीशन कर ली और अपनी चिकनी चूत विजय के मुंह पर रख दी और खुद उसका लंड चूसने लगी।
विजय ने एक दो बार तो उसकी चूत में जीभ घुसाई पर अगले ही पल विजय ने हबड़-धबड़ में अपने को मालविका से छुड़ाया।
मालविका समझ नहीं पायी कि विजय क्यों नहीं कर रहा कुछ!
अब मालविका ने विजय को प्यार से चिपका कर होंठों से होंठ मिला कर प्यार करते हुए विजय की हिम्मत कुछ और बढ़ाई।
जब मालविका को लगा कि विजय के लंड में अब दोबारा तनाव आ गया है तो उसने विजय के कान में फुसफुसाकर कहा कि वो उसका औज़ार अपने अंदर चाहती है।
विजय ने उसको न छोड़ने का बहाना बना कर अंदर आने की बात को टालना चाहा.
पर मालविका की चूत में तो आग लग रही थी।
उसने विजय को जबर्दस्ती अपने ऊपर किया, टांगें चौड़ाई और विजय के हिम्मत हारते लंड को अपनी चूत के मुंहाने पर रख विजय से अंदर आने को कहा।
विजय ने दो बार असफल प्रयास किए पर वो अपना लंड मालविका की चूत में नहीं घुसा पाया।
उसके लंड में इतना तनाव नहीं आ पा रहा था कि वो अपने बलबूते चूत में दाखिल हो सके।
आखिर मालविका को अपना हाथ आगे बढ़ाना पड़ा। उसने विजय के मेंढक की तरह फिसलते लंड को मजबूती से पकड़ा और अपनी चूत के मुंहाने पर रख कर अंदर धकेला।
एक दो बार के प्रयास के बाद मालविका विजय के लंड को अंदर कर पायी।
अब चोदना तो विजय को ही था।
उसने दो चार धक्के लगाए तो लंड महाराज मैदान छोड़ कर बाहर फिसल गए और निकलते-निकलते उसने पानी सा पतला वीर्य मालविका की जांघों पर छिड़क दिया।
मालविका कामाग्नि और झुंझलाहट की आग में जल रही थी।
उसने साइड लैम्प को जलाया तो विजय शर्मिंदगी से मुंह झुकाये था।
मालविका समझ नहीं पायी।
उसने पूछा- क्या बात है, क्या आपको मैं पसंद नहीं? कोई न कोई बात जरूर है आप मुझे बताइये?
विजय ने उसे बहुत टाला पर मालविका पीछे पड़ गयी।
तब विजय रो पड़ा और उसने स्वीकार किया कि वो बचपन से ही कमजोर है। उसका काफी इलाज़ हुआ, पर उसकी यौन क्षमता नाकाफी है। वो किसी औरत को सुख नहीं दे सकता।
अब मालविका रो पड़ी।
उधर विजय भी दुखी था।
उसने मालविका के बहुत हाथ पैर जोड़े और कहा कि बस सेक्स के अलावा उसे हर सुख सुविधा मिलेगी पर मालविका अब उसके साथ रहने को तैयार नहीं थी।
मालविका ज़ोर ज़ोर से बात कर रही थी और कह रही थी कि ठाकुर साहब को भी कोई अधिकार नहीं था उसकी ज़िंदगी बर्बाद करने का।
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।
मालविका ने एक नाइटी गाउन डाला और दरवाजा खोला।
ठाकुर साहब अंदर आए।
मालविका उनसे भी खूब ज़ोर से रोते हुए चीखी- आपको क्या हक़ था मेरी ज़िंदगी तबाह करने का?
ठाकुर साहब मालविका से बोले कि वो उनकी बात सुन ले फिर जो वो चाहेगी वैसा ठाकुर साहब व्यवस्था कर देंगे।
मालविका कुछ शांत हुई।
ठाकुर साहब ने विजय से कहा कि वो जाकर उनके कमरे में सो जाये।
उसके जाने के बाद ठाकुर साहब मालविका से बोले कि उन्होंने मालविका के माँ बाप को विजय की नपुंसकता की बात शादी से पहले ही बता दी थी। इस बात को मालविका से छिपाने के लिए उन्होंने एक बड़ी रकम मालविका के बाप को दी भी है।
मालविका भौचक्की थी यह सुनकर!
ठाकुर साहब ने बताया कि मालविका के बाप के ऊपर कर्ज़ और छोटी लड़की की विवाह की ज़िम्मेदारी थी।
मालविका से उन्होंने कहा कि सिर्फ सेक्स के अलावा और दुनिया का हर सुख मालविका के पास होगा।
उन्होंने साफ कहा कि वो मालविका की निजी ज़िंदगी में कभी दखल नहीं देंगे, वो अपनी जिंदगी जैसे चाहे जिये. बस एक ही शर्त है की दुनिया के सामने उनकी हवेली की शान न घटे।
ठाकुर साहब ने एक बेहद घटिया और घिनौना प्रस्ताव मालविका के सामने रखा कि अगर वो चाहे तो बिस्तर का हर सुख वो उसे दे सकते हैं।
मालविका ने यह सुनते ही एक जोरदार तमाचा उनके मुंह पर मारा और बोली- वेश्या समझा है क्या मुझे?
ठाकुर साहब ने अब आवाज़ टेढ़ा कर के कहा- अगर मैं चाहता तो वेश्या क्या … बीवी भी बना लेता अपने पैसों के बल पर! पर सोचना कि मेरे प्रस्ताव में बुराई क्या है। मैं 50 साल का कसरती बदन का लंबी रेस का घोड़ा हूँ। तुम्हारी सास को उसकी मौत से पहले तक रोज़ चोदता था। इस हवेली की सभी नौकरानियाँ मुझ से चुद चुकी हैं। बस तुम्हारी सास के देहांत के बाद मैंने सब छोड़ दिया, इसीलिए रात को कोई नौकर हवेली में नहीं सुलाता।
उन्होंने आगे कहा- तुम चाहो तो मेरे बच्चे की माँ भी बन सकती हो। ये राज़ सिर्फ हम तीनों के बीच ही रहेगा। अगर तुम नहीं मानोगी तो अकेले यहाँ ज़िंदगी बसर कर सकती हो और अगर चाहो तो कल ही तुम्हें तुम्हारे मायके भिजवा दूँगा खाली हाथ! फिर जीना भूखे पेट उम्र भर! और अगर मुंह खोला तो उसी दिन गला कटवा दूँगा तुम्हारे पूरे खानदान का। तुम जानती ही हो ठाकुरों को।
कह कर ठाकुर साहब अपने कमरे में जाने को खड़े हुए और बोले- अगर मेरी बात ठीक लगे तो मुझे बुला लेना। इस सेज़ की सजावट और तुम्हारे अरमान आज ही पूरे होंगे।
मालविका कटे पेड़ की तरह बेड पर गिर गई और फूट फूट कर रोने लगी।
थक गयी वो रोते रोते!
नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी।
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